Friday, May 8, 2020

वैदिक अनुष्ठानों का महत्व



आदित्य वैदिक ज्योतिष 

आदित्य वैदिक ज्योतिष मात्र एक ज्योतिष संस्थान नहीं हे वरण आपके कष्टों का निवारण ईश्वरीय उपायों जैसे मंत्र, यंत्र, तंत्र, अनुष्ठान, साधना, जप, तप, होम द्वारा किया जाता हे। बिना प्रारब्ध, अकर्म, अधर्म, पाप, अभिशाप के जीवन में अनगिनत, अनवरत कष्ट नहीं आते एवम् लाख उपाय करने पर भी ये कष्ट दूर नहीं होते। सिर्फ ईश्वरीय उपाय ही इन कष्टों के निवारण का एक मात्र उपाय हे।

जैसे कुंडली के अष्टम, द्वादश, तृतीय व षष्ट भाव के अलावा विभिन्न भाव मे स्थित राहु केतू से पूर्व जनम से आये हुए कष्टों का पता चलता हे। हमारा संस्थान बहुत बारीकी से पहले आपके कुंडली के समस्त दोषो का आकलन करता हे फिर कोन से अनुष्ठान द्वारा सटिक रूप से इन कष्टों का निवारण करना हे ये तय करता हे और उसी के अनुसार आपका संकल्प लिया जाता हे ईश्वर को प्रेषित करने के लिये। 

आपके गोत्र व संकल्प तथा संकल्प की सामग्री लेने के बाद आप उस अनुष्ठान में सम्मिलित रह भी सकते हैं, नहीं भी रह सकते हे। आपके गोत्र व संकल्प वस्तु से ईश्वर  के पास आपकी हर समस्या के निवारण हेतु प्रार्थना प्रेषित होती रहती है। ईश्वर का आवाहन, आसन, आरम्भिक प्रेषण, षोडषोप्च्चार अर्पण, जप, व दशांश का होम इन समस्त प्रक्रियाओं द्वारा ये कार्य किया जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी आपका संकल्प व संकल्प की वस्तु होती हे। ये हमारे पास पहुंचने से आप कहीं भी हो आपका ये कार्य हो जाता हे। संकल्प अब ओंकार द्वारा   फ़ोन पर भी लिया जाता हे। और आपके अनुष्ठान का वीडियो भी भेजा जाता है।

भारतीय धामों, शक्ति पीठों, ज्योतिर्लिंगो का महत्व एवम् इनसे सम्बन्धित जप, तप, होम व अनुष्ठान :-

इन धामो की प्राचीन कहानियां  जगत के सृजन कर्ता ,  पालन हार व रक्षक श्री ब्रह्मा, शिव व  विष्णू से जड़ी हुई हे। भारत के सभी मन्दिर शक्ति, भक्ति, श्रद्धा, शुध्त्ता, प्रेम, त्याग , समर्पण का प्रतीक हे तथा यहां आने वाले हर श्रद्धालु को ईश्वर सुन्दर जीवन व आजीवन रक्षा का आशीर्वाद देते हैं। श्री विष्णू भगवान की कृपा से इस प्राचीन मन्दिर का निर्माण हुआ था। इस मन्दिर के दर्शन मात्र से ही प्रारब्ध व इस जनम के असंख्य पाप कट जाते हैं। 

और वैसे भी ये प्रसिद्ध मन्दिर हैं जिनमें प्रवेश मात्र से ही आत्मा की शान्ती व शुद्धि प्राप्त होती हे। मन में दबी छिपी मनो कामना पूरी होती हे। मोक्ष चाहने वालों को मोक्ष प्राप्ति होती हे। भारतवर्ष के जितने भी मान्यता प्राप्त मन्दिर हे वो एक शक्ति केंद्र की तरह होते हे। उनके दर्शन मात्र से ही शरीर में शक्ति का संचार होता हे जीवन का लक्ष्य प्राप्त होता हे। 

जो लोग मन्दिर के दर्शन नहीं कर पाते हे वो उस मन्दिर के स्मरण के साथ साथ उससे सम्भ्धित अनुष्ठान करने से वही फल प्राप्त होता हे जो मन्दिर के दर्शन करने से। में  इस तरह के सभी अनुष्ठान सम्पन्न करवाता हूँ। इच्छुक  व्यक्ति का संकल्प लेकर पुरे नियम से ये कार्य किया जाता  हे। 

इसी तरह शक्ति पीठ हमारे देश की सिर्फ एक अध्यात्मिक विरासत ही नहीं है बल्कि हम सब के लिये दुख तकलीफ कष्ट बाधाओं में एक मुक्ति का मार्ग हैं । शास्त्र में लिखा हे की इन शक्ति पीठों में मन्नत माँगने पर जरुर पूरी होती  हे। अतः: इनके दर्शन मात्र से व्यक्ति को शान्ती सुख और समृध्धि मिलती है। शक्तिपीठो के साथ साथ द्वादश ज्योतिर्लिंगो के दर्शन की भी हमारे शास्त्रों मैं बहुत ही ज्यादा महिमा हे । 

हिंदू वेदीक मान्यताओं के अनुसार मृत्योरप्रांत पितरो के मोक्ष के लिये कुछ नियत जगहों पर पितरो का कर्म काण्ड  किया जाता है । मान्यता अनुसार इस त्रिस्थली में अपनी अपनी मान्यता और सुविधा अनुसार लोग तर्पण आदी के कर्म को पीर करते हे और ये जीवन में एक बार अवश्य करना पड्ता है पितरो की शान्ती और भविष्य के सुख और शान्ती के लिये । 

गंगा-यमुना-सरस्वती-भागीरथी-अलकनंदा-नर्मदा-गोदावरी-कृष्णा आदी नदियों के घाटों पर, सिद्ध पीठों - धर्म स्थानों पर , मजारों - दरगाहों में, ईश्वर-खुदा का सदा वास होता है एक अजीबोगरीब शक्ति, पवित्रता सुख और शान्ती का अनुभव होता है और पूर्ण विश्वास आस्था और समर्पण भाव से मांगी हुई मुरादें जरुर पूरी होती हे। 

किन्तु जीवन में कभी कभी पाया जाता है  या काफी उम्र बीत जाने पर ये एहसास होता हे की प्रारब्ध का भार या बोझ बहुत अधिक है और जनम का लिखा - विधि का विधान आगे ही नहीं बढ़ने दे रहा हे। लगता हे जैसे कोई रोक रहा है अटका रहा है । 

कभी पापों का बोझ लगता है घोर बीमारी के रूप मे तो कभी शत्रु हावी हो जाता हे बार बार। कभी शिक्षा अधुरी रह जाती है  तो कभी आर्थिक क्लेश। कभी लडाई झगडे तो कभी अलगाव और दूरी । सब कुछ लगता है जैसे जन्म के समय लिख दिया गया है । 

में और मेरी पुरोहित की टीम पुरे नियमावली से ये बड़े  पूजा सम्बन्धी अनुष्ठान करती हे। महामिर्त्यूंजय जाप और होम सबसे कठिन हे इन सब पूजा अनुष्ठानों में। फिर भी हमलोग ये सभी पूजा अनुष्ठान करते है । बगलामुखी, केमुद्रम, कालसर्प, काल भैरव, काली दक्षिण आदी पूजा अनुष्ठान करते हैं । 

वैसे तो मां चामुण्डा , महालक्ष्मी तथा सरस्वती के अनेक रूपों के शक्ति, अर्थ, शत्रुदमन, आकर्षण, वशीकरण के अनुष्ठान होते है तथा इसी तरह काल भैरव के अनुष्ठान, मंगल दोष निवारण अनुष्ठान, वगैरह सब किये जाते है मगर सबसे कठिन , कलयुग में उपयोगी तीन अनुष्ठानो का जिर्क कर रहा हूं। 
 
महामृतंजय यंत्र व अनुष्ठान


इस सृष्टि का एक ही परम सत्य हे - जो जनमा हे उसका अन्त होना हे। कुछ भी शाश्वत नहीं। सृजन यदि अवश्यंभावी हे तो विनाश शाश्वत। और इस सृजन और संहार का मूल कारण माना जाता हे परम शक्तिशाली शिव को और उनके विभिन्न रुपो को।

जैसे शिव के कालभैरव रुप जग की रक्षा करते हे उसी तरह शिव के मृतंजय रुप मृत्यू या मिर्त्यु तुल्य कष्टो से रक्षा करते हे।

पर इतने कष्ट जीवन मे होते क्यों हैं- वो भी ऐसे ऐसे कष्ट और बन्धन जो अकल्पीनय हैं- मैं  यहाँ ऐसे कष्टो का विवरण तक नही कर सकता बस जो उन कष्टो का भोग करता हे वही उसमे निहित व्यथा, पीड़ा, दर्द, क्लेश को समझ सकता हे। आखिर क्यूं है  इतनी पीड़ा?

युगों के अनुसंधान  व शास्त्रो मे वर्णित सच्चाई को समझे तो सब ये मानने पर विवश हो जायेगे की हमारा जनम एक निरंतर होने वाली प्रक्रिया हे और हमे कई कई बार कई कई योनियों मे जनम लेना पड्ता हे जो हमारे जनम के बाद के कर्म, अकर्म, अधर्म, अप्कर्म पर निर्भर हे जिससे प्रारब्ध का जनम होता हे और वो प्रारब्ध हर जनम मे आपके जीने की गति और तरीका सुनिश्चित कर्ता है।

और उस प्रारब्ध द्वारा सुनिश्चित कर्मो के कठोर बन्धन्ं, सजा, दंड, कष्ट की निवर्ति शिव के ही महामिर्तुंज्य रुप करते हैं। इसलिये शिव के इस रुप की आराधना, साधना, पूजा, अनुष्ठान, जप, होम सब कुछ करने का प्रावधान बना।

अपने कष्टो से छुटकारा पाना चाहते हे तो इसकी आरधना  जरुर करे। इस यंत्र द्वारा आप आपने इस जनम को ही नही बल्कि गत व अनागत को भी ठीक कर सकते हे। इस यंत्र की आराधना से अपने पूर्व जन्मो के संचित अकर्मो, अधर्मो, अप्कर्मो की क्षमा भी मांग सकते हे।

इस यंत्र की पूजा से कालदेव, यमदेव, शनिदेव, शिवदेव, विष्णुदेव व राहु केतदेव सभी एक खुश हो जाते हैं।

राहु यंत्र व अनुष्ठान


जैसे केतू की आराधना बिना धूमकेतदेवी यंत्र के अधुरी हे उसी तरह राहु देव की कृपा पाने के लिये ये यंत्र बहुत जरूरी हे। वास्तव मे केतू को तो सिर्फ  शुक्र,अर्थ,सुख, वैभव,समृध्धि का शत्रु माना जाता हे पर उसके विपरीत केतू मनुष्य के कर्मो को अध्त्यांत्म्म, चिंतन, साधना की तरफ ले जाता हे जो बढती उमर के साथ अच्छा माना जाता है। 
पर राहु यदी खराब हुआ तो जो ज्यादातर खराब ही होता हे तीसरे, छठे व दशम घर को छोडकर तो ता उम्र कष्ट, विघ्न, सन्ताप, तडप, शत्रुता, गरीबी, मनहूसियत ही देता हे। एक तरह का बन्धंन योग बना देता हे। मनुष्य उस यग की पीडा से लाख प्रयत्न करने पर भी नहर नही निकल पाता और अन्त्त्त: उसे बस ईश्वर की शरण ही नजर आती है। 
ज्योतिष शास्त्रों मे लिखा है व अनेक ज्योतिष राहु की दशम व एकादश भाव की स्थति को बहुत अच्छा बताते हे  पर मेरे जीवन के 30 सालो के अनुभव मे एक भी ऐसा व्यक्ति नही आया जिसका राहु दशम या एकादश मे होते हुए भी वो खुश, संतुष्ट, स्मृध्ध व निरोगी था। अत: मुझे राहु की बात को लेकर ज्योतिष शास्त्र या ज्योतिष्यों पर बिल्कुल भरोसा नही है। 
मेरा अनुरोध हे की राहु कहीं भी बेठा हो उसकी सदा कृपा प्राप्ति के लिये शिव तथा छिन्नामास्ता देवी की पूजा के साथ साथ काल भैरव की पूजा नित्य करते रहे। 
राहु वास्तव मे पूर्व जन्म के अधूरे कर्मो, पापो, अकर्मो, अधर्मो, अप्कर्मो, प्रारबधो की सजा पुरी कराने के लिये व्यक्ति को मर्त्यलोक मे लेकर आता हे और विविध कष्ट देकर उसे प्रायश्चित करवाता हे विशेष कर अपनी महादशा, अन्तर्दशा, प्र्य्त्यंतर्दशा मे तथा संकटा की योगिनी दशा के प्रथम 4 सालो में।
राहु का चंद्र, सुर्य, लग्न से अस्टम या द्वादश बेठना या  चंद्र, सुर्य, गुरु, मंगल के साथ बेठना बहुत ही खराब होता है।

केतू यंत्र व अनुष्ठान



ये यंत्र केतू संबंधी सभी समस्याओं से निजात दिलाता हे। जब जब कुंडली में केतू तीसरा व छटा घर छोड़ कर कहीँ भी बेठता हे या फिर किसी शत्रु ग्रह के साथ बेठता हे जैसे शुक्र के साथ तो केतू के खराब प्रभाव को दूर करने के लिये बराबर केतू की पूजा, आराधना करें।

केतू जीवन में व्यक्ति को आर्थिक स्थिति से बहुत कमजोर कर देता हे या यूं कहूँ की पूरी तरह बर्बाद भी कर देता हे व्यक्ति को ईश्वर  या अध्यात्म की तरफ प्रेरित करने के लिये। अतः केतू देव से प्रार्थना करने का मतलब हे धूमावती देवी व उच्छिष्ट गणपति की उपासना बराबर करते रहे अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाये रखने के लिये।

केतू को चन्द्रमा का दक्षिण ध्रुव कहा जाता हे तथा  दक्षिण   पश्चिम दिशा का स्वामी। इस दिशा को नेकृत्य दिशा भी कहते हैं। लेकिन केतू राहु की तरह किसी भी दिशा पर अपना प्रभाव नहीं डालता हे। बस ये ग्रह है जो व्यक्ति में बहुत ज्यादा असंतोष व अलगाव की भावना भर देता है, दूसरों से संबंध तो जरुर ही बिगाडता है - ये तो प्रमाणित है। केतू व्यक्ति को जब दिवालिया करता हे तो बहुत बुरी तरह करता हे। निम्न स्तर के लोगों से उठने बैठने को विवश कर देता है क्योंकि इनसान के पास कुछ बचता नहीं।

केतू व्यक्ति को अन्तर आत्मा से शुद्ध करके ईश्वर प्राप्ति के रास्ते पर चलाता है।

वैदिक  अनुष्ठान ,होम ,हवन ,जप, तप 

कलियुग में मनुष्य का जनम ही प्रारब्ध के अकर्म, पाप, अधर्म, द्वेष, ईर्ष्या, वासना, लोभ, क्रोध से जन्मे भोगो का भोग करने के लिये हुआ है! जो भोग पिछले जनमो में अधूरे रह गये उसे पूरा करने के लिये ही ये जन्म लेना पड़ा  है! इसलिए चारों ओर इतना हाहाकार, चीत्कार, मार है और इसलिये मनुष्य नासमझी में और अधिक व्यभिचार, भ्रष्टाचार, अतिचार, कुविचार में लिप्त होता जा रहा है क्योंकि सजा भुगतने के लिये रास्ते बनाने पड़े जिन रास्तों पर चलकर मनुष्य खुद ही अपनी सजा का हकदार हो जाता है इस कलयुगी पाप और पुण्य के बीच मनुष्य बुरी तरह फंस गया है ! 

विश्व के पाँच प्रति शत लोगों के पास 90 प्रतिशत धन, अर्थ, संपदा, समृद्धि, सुख सिमट कर रह गया है! जिनके पास नहीं हैं वो वर्षों वर्ष सब कुछ पाने की तमन्ना में जिंदगी बर्बाद किये जा रहे हैं । और जिसके पास है वो अपनी संपत्ति से और धन, सम्पत्ति बनाने में लगे हुए है! जिसके पास नहीं है वो पागलों की तरह भटक रहा हे दिशा हीन होकर कुछ पाने के लिये। और इस होने ना होने, पाने ना पाने की दौड़ और होड़ में हर आदमी मतिभ्रम, दिक्भ्र्ंम, विभ्रम का शिकार होता जा रहा है!

जब जब कुंडलियों में अष्टम और द्वादश भाव कुछ खास गृहों की चपेट में आता हे और पंचम भाव नष्ट हो जाता है समझ जाइये की आप विगत, पूर्व जीवन के अधूरे भोग हुए कर्मों का शिकार हो चुके हैं  और आपका ये जीवन कोई और अदृश्य शक्ति संचालित कर रही है! आपको या तो भोग करने होंगे या फिर क्षमा याचना के सारे धार्मिक रास्ते अपनाने होगे! जैसे जैसे प्रारब्द्द के दोषों का उन्मूलन होता जायेगा वैसे वैसे आपको जीवन में सुख, शान्ती, समृद्धि, सफलता, अर्थ, धन, वैभव मिलता जायेगा हो सकता है  थोडी देर हो मिलने मैं पर मिलेगा जरुर। इसी का निवारण है ये अनुष्ठान यानि वैदिक अनुष्ठान :-

आदित्य वैदिक ज्योतिष मात्र एक ज्योतिष संस्थान नहीं हे वरण आपके कष्टों का निवारण ईश्वरीय उपायों जैसे मंत्र, यंत्र, तंत्र, अनुष्ठान, साधना, जप, तप, होम द्वारा किया जाता हे। बिना प्रारब्ध, अकर्म, अधर्म, पाप, अभिशाप के जीवन में अनगिनत, अनवरत कष्ट नहीं आते एवम् लाख उपाय करने पर भी ये कष्ट दूर नहीं होते। सिर्फ ईश्वरीय उपाय ही इन कष्टों के निवारण का एक मात्र उपाय हे।

कुंडली के अष्टम, द्वादश, तृतीया व षष्ट भाव के अलावा विभिन्न भाव में स्थित राहु केतू से पूर्व जनम से आये हुए कष्टों का पता चलता हे। हमारा संस्थान बहुत बारीकी से पहले आपके कुंडली के समस्त दोषों का आकलन करता हे फिर कोन से अनुष्ठान द्वारा सटिक रूप से इन कष्टों का निवारण करना हे ये तय करता हे और उसी के अनुसार आपका संकल्प लिया जाता हे ईश्वर को प्रेषित करने के लिये।आपके गोत्र व संकल्प तथा संकल्प की सामग्री लेने के बाद आप उस अनुष्ठान में सम्मिलित रह भी सकते हैं, नहीं भी रह सकते हे। आपके गोत्र व संकल्प वस्तु से ईश्वर  के पास आपकी हर समस्या के निवारण हेतु प्रार्थना प्रेषित होती रहती है। 

ईश्वर का आवाहन, आसन, आरम्भिक प्रेषण, षोडषोप्च्चार अर्पण, जप, व दशांश का होम इन समस्त प्रक्रियाओं द्वारा ये कार्य किया जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी आपका संकल्प व संकल्प की वस्तु होती हे। ये हमारे पास पहुंचने से आप कहीं भी हो आपका ये कार्य हो जाता हे। संकल्प अब ओंकार द्वारा   फ़ोन पर भी लिया जाता हे। और आपके अनुष्ठान का वीडियो भी भेजा जाता है
  







Tuesday, April 7, 2020

अध्यात्म - Spiritualism

धर्म, अध्यात्म व विज्ञान
भाग - 1

भय, किस बात का भय, - “मृत्यु का”
क्या ये भय इतना प्रबल हो चुका है कि सब कुछ बंद पूर्ण बंद –“Lockdown”
क्या ये भय अध्त्याम सम्मत है या विज्ञान सम्मत ?
क्या हमारा धर्म और अध्त्याम यही भय सृजन करना सिखाता है ।
और इस भय के कारण सम्पूर्ण निष्क्रियता – क्या यही है गीता का तत्व ज्ञान ?

कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन ।
मां कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि।।

आपको सिर्फ कर्म करने का अधिकार है, लेकिन कर्म का फल देने का अधिकार भगवान् का है, कर्म फल की इच्छा से कभी काम मत करो| और न ही आपकी कर्म न करने की प्रवर्ती होनी चाहिए|
सरल भाषा में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, सिर्फ तू कर्म कर, कर्म के फल की इच्छा मत रख, कर्म फल को देने का अधिकार सिर्फ ईश्वर का है, और न ही खली बेठ अर्थार्थ मनुष्य की गति हमेशा ही कर्म में रहनी चाहिए, कर्म फल को ईश्वर पर छोड दे|
तो सब कुछ तो बंद है सम्पूर्ण Lockdown – तो ऐसे मे मनुष्य क्या काम करे – क्या मृत्यु का भय इतना तीर्व होता है कि –

भूख, बेकारी, निराशा, क्षय, कलह, विंध्वस, तम !
आदमी को छोड मृत्यु बाकी सब स्वीकार है।

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

अर्थ:- अर्थार्थ आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, डर मत, अपना कर्म कर आत्मा शरीर एक माध्यम है आत्मा अज़र अमर है इसे कोई नहीं मार सकता अपना कर्म कर, और मरने मारने का डर छोड़.

तो हमारा शास्त्र जहां शरीर को नहीं आत्मा को , आत्मा के जन्म व पूर्व जन्म को ,  आत्मा के शाश्वत परिचालन को मान्यता देता है -  ठीक इसके विपरीत इस तुच्छ, नश्वर, शरीर के लिये इतनी आसक्ति, इतना प्रेम – ये कैसा देश । ये कैसा Lockdown ?

धर्म, अध्यात्म व विज्ञान
भाग – 2

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)
अर्थ: विषयों (वस्तुओं) के बारे में निरंतर सोचते रहने से मनुष्य को इनसे आसक्ति हो जाती है। इससे कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में रूकावट आने से क्रोध उत्पन्न होता है।
इसलिय श्री कृष्ण कहते हैं सांसारिक विषय वस्तु और रिश्तों में आशक्ति (attachment) मत रख|

तो फिर Lockdown में मनुष्य क्या करे। उसे आसक्ति होनी ही है। आंखो के सामने आसक्ति जनित विषय वस्तु हो 24 घंटे तो मनुष्य बिचारा क्या करे। इस Lockdown में तो वो बैठ कर सोचेगा ही और Social Distancing के कारण कामना पूर्ती ना होने पर क्रोध आयगा ही। क्या ये गीता के ज्ञान का तथा भारतीय अध्त्याम का पूर्ण रूप से उल्लंघन नही ?

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।१४
(अध्याय 2, श्लोक 14)

हे कुंतीपुत्र! इंद्रिय और विषयों का संयोग तो सर्दी-गर्मी, की तरह सुख-दुःखादि देने वाला है, यह अहसास हमेशा रहने वाला नहीं है, इसलिये हे भारत! उनको तू सहन कर और इनसे विचलित न हो।
यहाँ श्री कृष्ण कह रहे हैं, इस संसार में दुःख सुख का ही एक दूसरा पहलू है, दुःख का अनुभव करके ही हमें सुख की अनुभूति होती है, लेकिन श्री कृष्ण कहते हैं, मनुष्य तू सुख और दुखों के अनुभव से विचलित मत हो, उनसे आशक्ति मत रख, ऐसे जीवन जियो जैसे कुछ हुआ ही न हो| दुःख में न दुखी हो और सुख में न सुखी हो, चित्त को स्थिर रखो|

पर आज हम सब कितने डरे हुए हैं। हर चीज बंद -  Lockdown क्यों, किसलिये, कबतक इस नश्वर शरीर के लिये इतना भय।
क्या यही प्रेरणा मिली है हमको हमारे ग्रंथों से ?

धर्म, अध्यात्म व विज्ञान
भाग –  3

न जायते म्रियते वा कदाचि नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे || 20||
(अध्याय 2, श्लोक 20)

यह आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है। यह आत्मा अजन्मा नित्य  शाश्वत और पुरातन है  शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।
श्री कृष्ण कहते हैं तेरा(मनुष्य) मूल स्वरुप आत्मा है, शरीर मात्र एक माध्यम, शरीर की मदद से इस संसार से हम संवाद
(communicate) कर पाते हैं|

तो इस जर शरीर के लिये इतना मोह क्यों, इतनी पाबन्दी क्यों ?

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
(अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)

इस श्लोक का अर्थ है: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
तो जब वासुदेव श्री कृष्ण की शरण है तो भय क्यो – मृत्यु का भय क्यों – सारे Lockdown का मूल है- ये भय ही तो है।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
(अध्याय 2, श्लोक 22)

मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है ऐसे ही देही (आत्मा) पुराने शरीरों को छोड़कर दूसरे नये शरीरों में चला जाता है।
यहाँ श्री कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं, यह संसार परिवर्तन शील है, जीवन एक यात्रा है यहाँ लोग आते हैं चले जाते हैं, किसी भी वस्तु और व्यक्ति से आशक्ति (attachment) मत रख, बस जो जीवन में अभी हो रहा है उसको अनुभव कर और उस क्षण का आनंद ले|
तो क्यो ये भय क्यो ऐसी बंदी क्यो ये- Lockdown। क्या हमारा देश, हमारा समाज, हमारे लोग इतने कमजोर है, इतने डरपोक हैं ? क्या जीवन जीने का लालच, विवशता, और विभीषिका इतनी ज्यादा है कि कहना पडता है :- 
भूख, बेकारी, निराशा, क्षय, कलह, विंध्वस, तम ! 
आदमी को छोड मृत्यु बाकी सब स्वीकार है।
कितना कमजोर बेबस अभागा मनुष्य है अपने देश का।

धर्म, अध्यात्म व विज्ञान
भाग – 4

भय, किस बात का भय, - “मृत्यु का”
क्या ये भय इतना प्रबल हो चुका है कि सब कुछ बंद पूर्ण बंद –“Lockdown”
क्या ये भय अध्त्याम सम्मत है या विज्ञान सम्मत ?
क्या हमारा धर्म और अध्त्याम यही भय सृजन करना सिखाता है ।
और इस भय के कारण सम्पूर्ण निष्क्रियता–क्या यही है गीता का तत्व ज्ञान ?

क्या ये भय निरापद नहीं? क्या ये भय हमारा विज्ञान के प्रति सम्पूर्ण सर्मपण नही? क्या इसमे किंचित मात्र भी अध्यात्म का समावेश है? क्या भारत जैसे विशाल व  पुरातन सभ्यता की इसमे कोई झलक है? सिर्फ भय , भय और भय ।

वो भी किस चीज का-
सिर्फ मृत्यु का – इस नश्वर शरीर के नष्ट होने का। 
क्या Lockdown के बदले इस देश के समस्त लोगो को अध्यात्म का सहारा नहीं लेना चाहिये था ?

क्या इस देश के समस्त लोगो को सामुहिक हवन व यज्ञ का सहारा नही लेना चाहिये था?

क्या इस यज्ञ व हवन की ज्वाला मे सब कुछ जल कर नष्ट नही हो जाता?
क्या इस यज्ञ व हवन से जग पूर्ण शुद्धि मे नहीं जाता?

एक अध्यात्मिक देश बेवजह सिर्फ भय मे एक विकट आर्थिक संकट मे नहीं चला गया ?

क्या इस Lockdown से वैशविक विनाश रूका?

क्या इस Lockdown से प्रकृति के विनाश का गुण रूका? क्या सारा जोर लगा देने के बाद भी एक विनाश तबलिगी जमात के रूप मे सामने नहीं आ गया? विनाश,  तबाही और बरबादी ये प्रकृति का गुण है इसे जितना रोकोगे ये दूसरे रूप लेकर चला आयगा।

इसलिए अध्यात्म सर्वोपरि  है। भारत यदि सामुहिक हवन व यज्ञ करता तो आज जो भय पुरोहित, पुजारी, ब्राम्हण तक मे आ गया कम से कम वो भय तो नही आता।