Tuesday, April 7, 2020

अध्यात्म - Spiritualism

धर्म, अध्यात्म व विज्ञान
भाग - 1

भय, किस बात का भय, - “मृत्यु का”
क्या ये भय इतना प्रबल हो चुका है कि सब कुछ बंद पूर्ण बंद –“Lockdown”
क्या ये भय अध्त्याम सम्मत है या विज्ञान सम्मत ?
क्या हमारा धर्म और अध्त्याम यही भय सृजन करना सिखाता है ।
और इस भय के कारण सम्पूर्ण निष्क्रियता – क्या यही है गीता का तत्व ज्ञान ?

कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन ।
मां कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि।।

आपको सिर्फ कर्म करने का अधिकार है, लेकिन कर्म का फल देने का अधिकार भगवान् का है, कर्म फल की इच्छा से कभी काम मत करो| और न ही आपकी कर्म न करने की प्रवर्ती होनी चाहिए|
सरल भाषा में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, सिर्फ तू कर्म कर, कर्म के फल की इच्छा मत रख, कर्म फल को देने का अधिकार सिर्फ ईश्वर का है, और न ही खली बेठ अर्थार्थ मनुष्य की गति हमेशा ही कर्म में रहनी चाहिए, कर्म फल को ईश्वर पर छोड दे|
तो सब कुछ तो बंद है सम्पूर्ण Lockdown – तो ऐसे मे मनुष्य क्या काम करे – क्या मृत्यु का भय इतना तीर्व होता है कि –

भूख, बेकारी, निराशा, क्षय, कलह, विंध्वस, तम !
आदमी को छोड मृत्यु बाकी सब स्वीकार है।

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

अर्थ:- अर्थार्थ आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, डर मत, अपना कर्म कर आत्मा शरीर एक माध्यम है आत्मा अज़र अमर है इसे कोई नहीं मार सकता अपना कर्म कर, और मरने मारने का डर छोड़.

तो हमारा शास्त्र जहां शरीर को नहीं आत्मा को , आत्मा के जन्म व पूर्व जन्म को ,  आत्मा के शाश्वत परिचालन को मान्यता देता है -  ठीक इसके विपरीत इस तुच्छ, नश्वर, शरीर के लिये इतनी आसक्ति, इतना प्रेम – ये कैसा देश । ये कैसा Lockdown ?

धर्म, अध्यात्म व विज्ञान
भाग – 2

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)
अर्थ: विषयों (वस्तुओं) के बारे में निरंतर सोचते रहने से मनुष्य को इनसे आसक्ति हो जाती है। इससे कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में रूकावट आने से क्रोध उत्पन्न होता है।
इसलिय श्री कृष्ण कहते हैं सांसारिक विषय वस्तु और रिश्तों में आशक्ति (attachment) मत रख|

तो फिर Lockdown में मनुष्य क्या करे। उसे आसक्ति होनी ही है। आंखो के सामने आसक्ति जनित विषय वस्तु हो 24 घंटे तो मनुष्य बिचारा क्या करे। इस Lockdown में तो वो बैठ कर सोचेगा ही और Social Distancing के कारण कामना पूर्ती ना होने पर क्रोध आयगा ही। क्या ये गीता के ज्ञान का तथा भारतीय अध्त्याम का पूर्ण रूप से उल्लंघन नही ?

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।१४
(अध्याय 2, श्लोक 14)

हे कुंतीपुत्र! इंद्रिय और विषयों का संयोग तो सर्दी-गर्मी, की तरह सुख-दुःखादि देने वाला है, यह अहसास हमेशा रहने वाला नहीं है, इसलिये हे भारत! उनको तू सहन कर और इनसे विचलित न हो।
यहाँ श्री कृष्ण कह रहे हैं, इस संसार में दुःख सुख का ही एक दूसरा पहलू है, दुःख का अनुभव करके ही हमें सुख की अनुभूति होती है, लेकिन श्री कृष्ण कहते हैं, मनुष्य तू सुख और दुखों के अनुभव से विचलित मत हो, उनसे आशक्ति मत रख, ऐसे जीवन जियो जैसे कुछ हुआ ही न हो| दुःख में न दुखी हो और सुख में न सुखी हो, चित्त को स्थिर रखो|

पर आज हम सब कितने डरे हुए हैं। हर चीज बंद -  Lockdown क्यों, किसलिये, कबतक इस नश्वर शरीर के लिये इतना भय।
क्या यही प्रेरणा मिली है हमको हमारे ग्रंथों से ?

धर्म, अध्यात्म व विज्ञान
भाग –  3

न जायते म्रियते वा कदाचि नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे || 20||
(अध्याय 2, श्लोक 20)

यह आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है। यह आत्मा अजन्मा नित्य  शाश्वत और पुरातन है  शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।
श्री कृष्ण कहते हैं तेरा(मनुष्य) मूल स्वरुप आत्मा है, शरीर मात्र एक माध्यम, शरीर की मदद से इस संसार से हम संवाद
(communicate) कर पाते हैं|

तो इस जर शरीर के लिये इतना मोह क्यों, इतनी पाबन्दी क्यों ?

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
(अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)

इस श्लोक का अर्थ है: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
तो जब वासुदेव श्री कृष्ण की शरण है तो भय क्यो – मृत्यु का भय क्यों – सारे Lockdown का मूल है- ये भय ही तो है।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
(अध्याय 2, श्लोक 22)

मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है ऐसे ही देही (आत्मा) पुराने शरीरों को छोड़कर दूसरे नये शरीरों में चला जाता है।
यहाँ श्री कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं, यह संसार परिवर्तन शील है, जीवन एक यात्रा है यहाँ लोग आते हैं चले जाते हैं, किसी भी वस्तु और व्यक्ति से आशक्ति (attachment) मत रख, बस जो जीवन में अभी हो रहा है उसको अनुभव कर और उस क्षण का आनंद ले|
तो क्यो ये भय क्यो ऐसी बंदी क्यो ये- Lockdown। क्या हमारा देश, हमारा समाज, हमारे लोग इतने कमजोर है, इतने डरपोक हैं ? क्या जीवन जीने का लालच, विवशता, और विभीषिका इतनी ज्यादा है कि कहना पडता है :- 
भूख, बेकारी, निराशा, क्षय, कलह, विंध्वस, तम ! 
आदमी को छोड मृत्यु बाकी सब स्वीकार है।
कितना कमजोर बेबस अभागा मनुष्य है अपने देश का।

धर्म, अध्यात्म व विज्ञान
भाग – 4

भय, किस बात का भय, - “मृत्यु का”
क्या ये भय इतना प्रबल हो चुका है कि सब कुछ बंद पूर्ण बंद –“Lockdown”
क्या ये भय अध्त्याम सम्मत है या विज्ञान सम्मत ?
क्या हमारा धर्म और अध्त्याम यही भय सृजन करना सिखाता है ।
और इस भय के कारण सम्पूर्ण निष्क्रियता–क्या यही है गीता का तत्व ज्ञान ?

क्या ये भय निरापद नहीं? क्या ये भय हमारा विज्ञान के प्रति सम्पूर्ण सर्मपण नही? क्या इसमे किंचित मात्र भी अध्यात्म का समावेश है? क्या भारत जैसे विशाल व  पुरातन सभ्यता की इसमे कोई झलक है? सिर्फ भय , भय और भय ।

वो भी किस चीज का-
सिर्फ मृत्यु का – इस नश्वर शरीर के नष्ट होने का। 
क्या Lockdown के बदले इस देश के समस्त लोगो को अध्यात्म का सहारा नहीं लेना चाहिये था ?

क्या इस देश के समस्त लोगो को सामुहिक हवन व यज्ञ का सहारा नही लेना चाहिये था?

क्या इस यज्ञ व हवन की ज्वाला मे सब कुछ जल कर नष्ट नही हो जाता?
क्या इस यज्ञ व हवन से जग पूर्ण शुद्धि मे नहीं जाता?

एक अध्यात्मिक देश बेवजह सिर्फ भय मे एक विकट आर्थिक संकट मे नहीं चला गया ?

क्या इस Lockdown से वैशविक विनाश रूका?

क्या इस Lockdown से प्रकृति के विनाश का गुण रूका? क्या सारा जोर लगा देने के बाद भी एक विनाश तबलिगी जमात के रूप मे सामने नहीं आ गया? विनाश,  तबाही और बरबादी ये प्रकृति का गुण है इसे जितना रोकोगे ये दूसरे रूप लेकर चला आयगा।

इसलिए अध्यात्म सर्वोपरि  है। भारत यदि सामुहिक हवन व यज्ञ करता तो आज जो भय पुरोहित, पुजारी, ब्राम्हण तक मे आ गया कम से कम वो भय तो नही आता। 

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